मेरी बात सुनता मुझे फिर से समझ पाता ! दिन कुछ यूँ गुज़र रहे थे उसके जैसे रेगिस्थान में प्यासा तडपता हूँ हिरन इक इक कदम खिसक खिसक के चल रहा हो, और हर अगले क़दम पै उससे अपनी मंजिल नज़र आ रही हो !
कुछ पल यूँ ही ख़ामोश रखने के बाद उसने डायरी के कोरे पन्नो में सयाई फेरी ! कुछ सब्द उभर आये कितना याद आते हो ! और बहुत कुछ लिखना चाहती थी वो .. न जाने क्यूँ लफ्ज़ नहीं मिल रहे थे उससे .. कलम थम सी गई थी ...सांसें धधक रही थी, जैसे कि जलते हुए आग में घी डाल दिया हो ! आँखें लाल हो चुकी थी ..रो-रो के ! सामने पड़ी डायरी के पन्ने आंसुओं कि बरसात में गिले हो गए थे ..! आंसूं वो सब कुछ कह गये थे जो शायद वो मुद्दतों से कहना चाहती थी....लिखना चाहती थी !
और बहुत लिखने कि कोशिस कि उसने...सिर्फ इतना लिख पाई...!
आज सांसें भी चुब रही है मेरी...धधकने सिमट सी गई है ! जीने कि कोई आरज़ू नहीं !
आ जाओ अब, कि ज़िन्दगी कम सी है !!!
"इंतज़ार तेरा ही करता हूँ में अब तलक,
अब कैसे कह दूँ कि प्यार नहीं है तुझसे 'मनीष' !!"
मनीष मेहता !
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