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"ना जाने क्यूँ आज दिल में एक चुभन सी है, यादों के झरोखों से झाँक के देखा तो सामने खुबसूरत बचपन का ज़मान था,  सचमुच कितना खुबसूरत था न बचपन का ज़माना !
वो बचपन कि मस्तियाँ, वो शरारतें,  दादी का ऐनक छुपा देना, दादाजी को घोड़ा बना के उनकी सवारी करना, गुल्ली-डंडा लिए दोस्तों के साथ घंटों खेलना, वो गुड्डे कि शादी में बाराती बन के नाचना, बरसात के बाद खिलखिलाती धूप पै घर से निकलना, पानी पै छप्प-छप्प खेलना, कागज़ कि नाव बना के पानी पै खेलना, और कपड़ों को भीगा देना, फिर बाबूजी की डांट और मेरा नाराज़ हो जाना तुम्हारा मुझे गोद पै रखना, और मनाना,  सच कहू तो जब तुम मुझे अपनी गोद पै रखती थी न और प्यार से अपने हाथों से मेरे बालों को सहलाती थी न, कितना अच्छा लगता था उस पल, तुम्हारा मुझे समझाना,  "कि बेटा अच्छे बच्चे ये नहीं करते, अच्छे बच्चे वो नहीं करते, में चुपचाप सुनता रहता था तब !

मुझे याद है जब पहली बार में तुमसे जुदा हुआ था,  १० वी कि परीक्षा पास करने के बाद जब में आगे कि पढाई के लिए शहर आ रहा था,  कितना रोई थी तुम मुझसे लिपट के उस पल, और तब तक मुझे देखती रही थी,  जब तक में तुम्हारी नज़रों से ओझल न हो गया था. शायद उसके बाद तक भी,  तुम्हारा प्यार भरा नर्म स्पर्श अब भी महसूस करता हूँ  !

याद हें मुझे मेरे मना करने पर भी तुम्हारा वो बैग में चुपके से परांठे रख देना...उस रात को जब बैग में उलट पुलट के देखता था,  कि तुमने कुछ रखा होगा,  और किताबों के दरमियान उन पराठों को पाकर, दिल भर जाता था,  वो पल मुझे सबसे प्यारे लगते हैं ! उन पराठों को छुते ही तुम्हारे होने का अहसास होता था,  जेसे ही पहला नेवला लेता था, तो तुम्हरे हाथों कि खुशबू महकने लगती थी, और उन्हें खा कर अक पल के यूँ लगने लगता था कि जेसे तुम यही कही हो मेरे पास,  और प्यार से मेरे बालों में उंगलिया फिर रही हो,   और कह रही हो कि तुम मेरे प्यारे प्यारे बेटे हो ! और न जाने फिर कब नीद के आगोश में चला जाता था में पता ही नहीं चलता था !

रात जब तुम ख्वाबों में आयीं तो लगा यूँ कि जैसे मन की मुराद पूरी हो गयी हो, एक बार फिर से तुम्हे गले लगाकर दिल को सुकून मिला,  देर शाम रसोई से निकल जब तुम मेरे पास आ,  पहला निवाला खिलाती हो,  वो मुझे सबसे प्यारा लगता है,  और पेट भर जाने पर भी जब तुम कहती हो बस एक और एक और सह माँ बहुत याद आता है,  जब यहाँ दूर ख़ुद को तन्हा पाता हूँ,  हर बार पहले निवाले पर तुम याद आ जाती हो,  वही मुस्कुराता चेहरा,  और वही तुम्हारे हांथों में पहला निवाला !


 सच माँ जिंदगी में इस जीने की दौड़ और चंद कागज़ के टुकड़ों की चाहत ने मुझे तुमसे कितना दूर कर दिया शायद बहुत दूर,  जब भी आँखें भर आती हैं, तो तुम्हारे पास भाग आने को मन करता है,  तुम्हारे गोद में सर रख के जोर से रोने को मचलता है, दिल करता है फिर से वही ज़िन्दगी जियूं, वो सार दिन खेलना ..तुम्हारे आँचल टले जिंदगी गुजारना, तुम्हारा ऊँगली पकड़ मुझे स्कूल तक छोड़कर आना, छुट्टी हो जाने पर वहीँ खड़े रहना इस विश्वास के साथ कि माँ आएगी मुझे ले जायेगी, और फिर दूर तुम्हारा मुझे आते दिखाई देना , और दिल ही दिल खुश होना !


और वो फिर तुम्हारे हाँथों से खाना खाना , जबरन दूध का गिलास लेकर तुम्हारा मेरे पास आना , मेरा रोज़ की तरहा मना करना और फिर तुम्हारा मुझे प्यारी प्यारी कहानिया सुनाना, मुझे याद है मुझे दूध अच्छा नहीं लगता लगता था, लेकिन तुम्हारे प्यारे हाथों के अहसास में खों के कब जाने दूध का गिलास खत्म कर देता था, पता भी नहीं चलता, शायद तुम्हारे हाथों में कुछ जादू था ~

फिर पूरे दिन खेल में मस्त रहना,   पापा के डाँटने पर अपनी गोद में छुपा लेना,  सच माँ सब कुछ पहले जैसा हो तो कितना अच्छा हो है ना, ना मेरे घर से आने पर तुम उदास हो, और ना मैं दूर जिंदगी की दौड़ लगाऊँ !

सच माँ एक बार फिर से तुम्हारे आँचल की छत के तले, प्यार की दीवारों के बीच ज़िन्दगी गुजारने को मिल जाए तो कितना सुखद हो, मेरा रूठना , तुम्हारा मनाना,   पास आना,  सीने से लगाना !

माँ अभी अभी फिर से तुम्हारे नर्म हाथों को महसूस किया मैंने,  ऐसा लगा जैसे तुम इतने दूर से भी मेरे मन को सुन रही हो,  हमेशा की तरह और कह रही हो में तुम्हारें पास हूँ हर पल !

माँ तुम मुझे बहुत याद आती हो !

 

तुम्हारा -
मनीष ! 



मनीष मेहता (सर्वाधिकार सुरक्षित) 

Daksha Mehta
20/6/2012 08:47:08 pm

Speechless...... maa naam ka ehsaas hamari dhadkan se juda hota hai... bahut khoob aap ne shabdo mai iis ehsaas ko badla hai.. padh kar bahut achha laga... Stay Blessed.... !!

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Manisha joshi
20/6/2012 09:44:31 pm

by God's grace..i live with my mumma...!!
Very well quoted eternal feeling.. (:

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gunjan
20/6/2012 09:47:24 pm

sach manish ji bahut bdiya likha hai aapne........aankh bhar aayi isko padkar or padte hue aisa laga jaise kahi apne bachpan mai kho gayi hu...........

Reply
20/6/2012 10:10:37 pm

मनीष जी उम्दा प्रस्तुतीकरण
............काश ये बचपन वापस आ जाता

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kavita
20/6/2012 10:25:53 pm

बेहद खूबसूरत .............

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tanu
21/6/2012 10:07:15 pm

really touching.....................

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    SAFAR-E-ZINDAGI

    इस भाग दौड़ भरी ज़िन्दगी  में ख्वाबों कि दुनिया का मैं भी एक भटकता हूँ मुसाफिर, चला जा रहा हूँ. जा कहाँ रहा हूँ शायद अब तक नहीं पता मुझे, बस  चल रहा हूँ इसलिए कि रुकना खुद को कुबूल नहीं... हर चेहरे के पीछे ना जाने कितने चेहरे छुपे हैं यहाँ, रिश्तों को टूटते  देखा है अक्सर मैने. जाने क्या चाहता हूँ खुद से और क्यूँ भटक रहा हूँ अब तक एक सवाल है मेरे लिए ..जिसका ज़वाब तलाश रहा हूँ मैं ...अपनी एक ख्वाबों कि दुनिया बसा रखी है मैने, खुद को खुद का साथी समझता हूँ मैं, हमसफर समझता हूँ मैं, वेसे तो कुछ भी खाश नहीं है मुझमें, फिर भी ना जाने भीड़ से अलग चलता हूँ मैं, लोगो को और उनके रिश्तो कि देख के अक्सर खामोश हो जाता हूँ मैं, कभी  गर मिलूँगा खुदा से तो पूछुंगा, "खुदा इस खमोशी को वजहा क्या है ??"

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