'आज फिर तू आ जाना,

मेरे ख़्वाबों के दर्पण में !!'

'आके मन मेरा महका जाना,

मेरे ख़्वाबों के दर्पण में !!'

'प्रेम ज्योति जला जाना,

मेरे ख़्वाबों के दर्पण में !!'

'फिर से पलके भीगा जाना,

मेरे ख़्वाबों के दर्पण में !!'

'आके मुझे रुला जाना,

मेरे ख़्वाबों के दर्पण में !!'

'आज फिर तू आ जाना,

मेरे ख़्वाबों के दर्पण में !!




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    SAFAR-E-ZINDAGI

    इस भाग दौड़ भरी ज़िन्दगी  में ख्वाबों कि दुनिया का मैं भी एक भटकता हूँ मुसाफिर, चला जा रहा हूँ. जा कहाँ रहा हूँ शायद अब तक नहीं पता मुझे, बस  चल रहा हूँ इसलिए कि रुकना खुद को कुबूल नहीं... हर चेहरे के पीछे ना जाने कितने चेहरे छुपे हैं यहाँ, रिश्तों को टूटते  देखा है अक्सर मैने. जाने क्या चाहता हूँ खुद से और क्यूँ भटक रहा हूँ अब तक एक सवाल है मेरे लिए ..जिसका ज़वाब तलाश रहा हूँ मैं ...अपनी एक ख्वाबों कि दुनिया बसा रखी है मैने, खुद को खुद का साथी समझता हूँ मैं, हमसफर समझता हूँ मैं, वेसे तो कुछ भी खाश नहीं है मुझमें, फिर भी ना जाने भीड़ से अलग चलता हूँ मैं, लोगो को और उनके रिश्तो कि देख के अक्सर खामोश हो जाता हूँ मैं, कभी  गर मिलूँगा खुदा से तो पूछुंगा, "खुदा इस खमोशी को वजहा क्या है ??"

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    Sher O Shayri (ग़ज़ल ) १